CG News : करकाभाट में दफन साढ़े तीन हजार साल पुराना इतिहास
CG News : छत्तीसगढ़ के बालोद जिले का करकाभाट गांव एक अनूठा ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ सैकड़ों एकड़ में फैले 3,500 साल पुराने महापाषाण कब्रों का विशाल समूह है। अनुमान है कि 10 किलोमीटर के दायरे में 8,000 से अधिक कब्रें यहाँ दफन हैं।
छत्तीसगढ़ का ‘स्टोनहेंज
छत्तीसगढ़ का बालोद जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता और खनिज संपदा के साथ-साथ एक अनूठे रहस्य को भी समेटे हुए है। यहां करकाभाट गांव में सैकड़ों एकड़ में फैले ऐतिहासिक पत्थरों और महापाषाण कब्रों का एक विशाल समूह है, जो आगंतुकों को चौंका देता है। यह स्थल करीब साढ़े तीन हजार साल पुराना माना जाता है और अनुमान है कि 10 किलोमीटर के दायरे में 8 हजार से अधिक कब्रें यहां दफन हैं।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, करकाभाट में पांच हजार से अधिक शव दफन हैं और एक समय था जब यहां से रात को सिसकियों की आवाजें सुनाई देती थीं, जिससे लोग शाम के बाद यहां से गुजरने से डरते थे। हालांकि, समय के साथ यह भयावह रास्ता अब राष्ट्रीय राजमार्ग बन चुका है।
अद्वितीय महापाषाणीय संरचनाएं
करकाभाट में पाए जाने वाले महापाषाणीय कब्र समूह की तुलना बस्तर, नागालैंड, मणिपुर और अफगानिस्तान जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में मिलने वाले स्मारकों से की जाती है, जो इसे अत्यंत विशिष्ट और अद्वितीय बनाता है। इन कब्रों के पास मछली, तीर और अन्य आकृतियों के बड़े-बड़े पत्थर मिलते हैं, जिन पर प्राचीन कलाकारी और नक्काशी साफ देखी जा सकती है। कुछ कब्रों के आसपास पिरामिड जैसी संरचनाएं भी हैं, जो इन विशाल पत्थरों को सहारा देती थीं।
संरक्षण की आवश्यकता और चुनौतियां
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सड़क निर्माण और नहरों की खुदाई के दौरान कई कब्रें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, और अतीत में यहां से पुराने पत्थरों की चोरी भी हुई है। हालांकि, अब इस स्थल को तारों से घेरकर संरक्षित किया गया है। पुरातत्व और इतिहास प्रेमियों का मानना है कि इस आदिम मानव सभ्यता के केंद्र को एक विशेष योजना के तहत संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि इसे एक प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा सके।
प्राचीन सभ्यता के प्रमाण
करकाभाट, जो शिवनाथ और महानदी के बीच स्थित है, आदिम मानव सभ्यता के महत्वपूर्ण चिह्न समेटे हुए है। पूर्व में यहां के आसपास के गांवों—कुलिया, कनेरी और धनोरा में खुदाई के दौरान पाषाण युगीन औजार, धातु के हथियार, सोने-चांदी और तांबे की मुद्राएं मिली हैं। एक मिट्टी के कलश में 30 सोने के सिक्के भी मिले थे, जिन पर सामपुरीय नरेश महेन्द्रादित्य जैसे शासकों की मुहरें थीं। ये सिक्के अब गुरु घासीदास संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
पुरातत्व खुदाई और अनसुलझा रहस्य
90 के दशक में पुरातत्व विशेषज्ञों की टीम ने इस रहस्यमयी स्थल पर खुदाई की थी, जिसमें भालों के नुकीले सिर, तीर और कृषि औजार मिले थे। हालांकि, इतने वर्षों बाद भी यह स्थल लोगों के बीच कौतूहल और आकर्षण का विषय बना हुआ है और इसकी पूरी कहानी अब भी अधूरी है, जो शोधकर्ताओं के लिए एक बड़ी चुनौती है।
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Author: Safeek khan
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