CG News : बस्तर की धरती से निकली रथयात्रा की अनूठी परंपरा
CG News : छत्तीसगढ़ की पावन भूमि बस्तर, जहां प्रकृति की गोद में समाहित जनजातीय संस्कृति अपने सबसे प्राचीन और रंगीन रूप में जीवंत है, वहां एक ऐसा त्योहार है जो इतिहास, आस्था, परंपरा और लोकस्मृति को एक साथ जोड़ता है—गोंचा महोत्सव। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि बस्तर की पहचान, उसकी सांस्कृतिक गहराई और सामाजिक समरसता का उत्सव भी है।
रथयात्रा की अनूठी परंपरा
गोंचा पर्व की शुरुआत सदियों पहले उस समय हुई थी जब बस्तर के तत्कालीन राजा पुरुषोत्तम देव, चालुक्य वंश के शासक होते हुए, पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन हेतु दंडवत यात्रा पर निकले थे। यह यात्रा केवल आध्यात्मिक नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान की मिसाल भी बन गई। पुरी में उन्हें ‘रथपति’ की उपाधि और 16 चक्कों वाला एक भव्य रथ भेंट किया गया। चूंकि उस विशाल रथ को बस्तर तक लाना कठिन था, इसलिए राजा ने उसे तीन भागों में विभाजित कर, रथयात्रा की परंपरा को स्थानीय संदर्भों में स्थापित किया। यहीं से बस्तर में ‘गोंचा रथयात्रा’ की परंपरा का जन्म हुआ।
क्यों है रथयात्रा विशेष
बस्तर की यह रथयात्रा पुरी से अलग और विशेष इसलिए भी है क्योंकि इसमें रथ खींचने के साथ-साथ एक विलक्षण परंपरा निभाई जाती है—तुपकी की। बांस से बनी नकली बंदूक और ‘गोंचा’ नामक फल से बनी गोलियों से लोग भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रादेवी को सलामी देते हैं। यह परंपरा सिर्फ बस्तर में ही देखी जाती है और यही इसे खास बनाती है। तुपकी की यह नकल लड़ाई नहीं, श्रद्धा और आनंद का प्रतीक है—बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी इसमें भाग लेकर अपनी भक्ति प्रकट करते हैं।
हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर आषाढ़ शुक्ल दशमी तक चलने वाले इस उत्सव में राजा, पुरोहित, ब्राह्मण, जनजातीय समुदाय और आम जनता सभी मिलकर भाग लेते हैं। यह पर्व बताता है कि बस्तर में धर्म और परंपरा, सत्ता और समाज, आस्था और उत्सव.
देशभर में मनाया जाता है रथयात्रा का उत्सव
इस साल जब रथयात्रा का उत्सव देशभर में मनाया जा रहा है, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय खुद दोकड़ा गांव और रायपुर के जगन्नाथ मंदिर पहुंचकर इसमें भाग लेंगे। उन्होंने प्रदेशवासियों को रथयात्रा की शुभकामनाएं देते हुए भगवान से समृद्धि, शांति और आपसी सद्भाव की कामना की।
यह त्योहार केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ और विशेषकर बस्तर की आत्मा का उत्सव है। यह हमें सिखाता है कि विरासत को कैसे सहेजना है, और भविष्य की पीढ़ियों को कैसे एकता और भक्ति की राह दिखानी है।
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Author: Safeek khan
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