Kamakhya Mandir: हिंदू धर्म में जब कोई महिला रजस्वला होती है तो उसका जीवन कुछ दिनों के लिए रुक जाता है, उसे न तो पूजा-पाठ करने की अनुमति होती है और न ही अन्य शुभ कार्यों में भाग लेने की, यहां तक कि मंदिर में प्रवेश भी वर्जित होता है। आज जमाना पुरुष प्रधान नजर आता है, लेकिन वह पुरुष भी स्त्री के शरीर से ही जन्मा है। इसी देश में महिला की शक्तियों का प्रतीक एक मंदिर, जहां योनि की पूजा की जाती है और महिलाएं मासिक धर्म के दौरान भी उस मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं। असम के दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। जिसे हम कामाख्या मंदिर (Kamakhya Mandir ) के नाम से जानते हैं। माता कामाख्या का यह मंदिर नारी शक्तियों को समर्पित माना जाता है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ रोचक और रहस्यमयी बातें।
क्या है कामाख्या मंदिर का रहस्य
माता कामाख्या को समर्पित यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। यहां मूर्ति के स्थान पर योनि कुंड है, जिससे हमेशा जल प्रवाह होता रहता है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में माता की योनि की पूजा की जाती है। इस मंदिर (Kamakhya Mandir) में अनोखे तरीके का प्रसाद दिया जाता है। आपको बता दें की कामाख्या मंदिर में प्रसाद के रूप में कपड़े का एक टुकड़ा मिलता है, जो रक्त में गीला होता है। यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए भी जाना जाता है। साल में तीन दिन अंबुबाची मेला के दौरान मंदिर के दरबार बंद होते हैं। ऐसी मान्यता है कि उस वक्त माता राजस्वला होती हैं। उस वक्त कुंड का पानी रक्त के समान लाल रंग से रंगा होता है। इस मंदिर में साधु ,तांत्रिक सभी अपनी शिद्धियो की पूर्ति के लिए आते हैं।
क्या है इस मंदिर की पौराणिक कथा
माता सती को जब भगवान शिव से प्रेम हुआ तब उनके पिता राजा दक्ष को उनका प्रेम विवाह स्वीकार नहीं था। लेकिन पुत्री मोह में वे कुछ ना कर सके। महाशिवरात्रि के दिन माता सती और भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ। विवाह के कुछ वर्षों बाद राजा दक्ष के द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा परंतु जानबूझकर भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। भगवान शिव के मना करने के बाद भी माता सती यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ स्थल पर जब दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किया गया तो माता कुपित हो उठीं और उनके हृदय को काफी चोट पहुंची।
माता ने क्रोध में आकर यज्ञ के अग्निकुंड में कूद कर अपने प्राणों का त्याग कर दिया। शिव जी को जब यह पता चला तो क्रोध के कारण उनकी तीसरी आंख खुल गई और उन्होंने राजा दक्ष का सर उनके धड़ से अलग कर दिया। उसके बाद भगवान शिव माता सती के पार्थिक शरीर को अपने गोद में लिए तीनों लोकों में भटकने लगे। उनकी यह दशा विष्णु जी से देखी नहीं गई और शिवजी को माता के पार्थिव शरीर के मोह से दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। पृथ्वी पर जहां-जहां यह टुकड़े गिरे उसे हम शक्तिपीठ के नाम से जानते हैं। उन्ही में से एक शक्तिपीठ मां कामाख्या मंदिर है जहां माता सती की योनि गिरी थी। इसीलिए वहां मां की योनि की पूजा की जाती है।
जानें अनोखे प्रसाद के पीछे का रहस्य
दरअसल, अंबुबाची के दौरान 3 दिन राजस्वला में होती है तो माता के दरबार मैं सफेद कपड़ा रख दिया जाता है। तीन दिन बाद जब दरबार खुलता है तो वह कपड़ा लाल रंग से भीगा होता है, जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। माता के मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत ही पवित्र होता है, माता की सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Mandir) सर्वोच्च माना जाता है। आमतौर पर उस कपड़े को अंबुबाची कपड़ा कहा जाता है। आपको बता दें कि जो व्यक्ति अपने पूरे जीवन काल में तीन बार इस मंदिर के दर्शन कर लेता है माता उसकी सारी इच्छाओं को पूरा करती हैं।
आज हमारे देश में जैसे,माता की पूजा की जाती है और उन्हें सम्मान दिया जाता है ,वैसा ही सम्मान यहां रहने वाली स्त्रियों और महिलाओं को भी दिया जाना चाहिए।