MP News : मध्य प्रदेश ज़हरीली कफ सिरप से 24 मासूमों की मौत के बाद FDA का बड़ा एक्शन
MP News : देशभर को झकझोर देने वाले ज़हरीले कफ सिरप मामले में मध्य प्रदेश के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने सख़्त कदम उठाए हैं। इस भयावह त्रासदी में अब तक 24 मासूम बच्चों की जान जा चुकी है, जिसके बाद प्रशासन ने ओवर-द-काउंटर (OTC) कफ सिरप की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। अब डॉक्टर की पर्ची के बिना ये सिरप बेचना ग़ैर-कानूनी होगा।
ज़हरीले रसायन की पुष्टि
स्वास्थ्य और औषधि प्रशासन विभाग लगातार प्रदेशभर में छापेमारी और जांच अभियान चला रहा है। अब तक कुल 243 कफ सिरप के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। इनमें से तीन ब्रांडों – कोल्ड्रिफ, रेस्पिफ्रेश टीआर और री-लाइफ – को असुरक्षित घोषित किया गया है।जांच में यह बात सामने आई है कि इन सिरप्स में डायएथिलीन ग्लायकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लायकॉल (EG) जैसे ज़हरीले रसायनों की मात्रा तय मानकों से कहीं अधिक पाई गई। ये रसायन किडनी, लिवर, ब्रेन और नर्वस सिस्टम के लिए बेहद घातक होते हैं। इन ब्रांड्स के सैंपल फेल होने के बाद पूरे राज्य में इनके स्टॉक को जब्त किया गया है। अब तक 1086 बोतलें ज़ब्त की जा चुकी हैं।
बिक्री और स्टॉक पर सख़्त नियंत्रण
FDA के नए और सख़्त आदेशों के तहत, कफ सिरप की बिक्री पर अब भारी पाबंदी लागू कर दी गई है| OTC बिक्री पर प्रतिबंध कोई भी मेडिकल स्टोर डॉक्टर की पर्ची (Prescription) के बिना कफ सिरप नहीं बेच सकेगा|रिकॉर्ड रखना अनिवार्य सभी थोक विक्रेताओं और रिटेलर्स को इन दवाओं की बिक्री का पूरा रिकॉर्ड रखना और प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा | होलसेलर अब महीने में अधिकतम 1000 बोतलें ही बेच सकेगा, रिटेलर को महीने में सिर्फ 50 बोतलें बेचने की अनुमति दी गई है।
गुणवत्ता जांच पर फोकस
औषधि प्रशासन विभाग ने उन दवाओं पर भी सख़्त निगरानी शुरू कर दी है जिनका नशे के रूप में दुरुपयोग हो रहा है, खासकर कोडीन युक्त कफ सिरप के खिलाफ सख्त निर्देश जारी किए गए हैं|भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए सरकार अब DEG और PEG (पॉलीएथिलीन ग्लायकॉल) टेस्ट को भी अनिवार्य बनाने जा रही है और औचक निरीक्षणों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
प्रशासन का कहना है कि दवा कंपनियों को गुणवत्ता जांच अनिवार्य रूप से करनी होगी और मानक से चूकने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई तय है। 24 बच्चों की जान चले जाना एक भयावह त्रासदी है, जिसने दवा उद्योग में जिम्मेदारी और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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