पीवी नरसिम्हा राव : THE REAL ACCIDENTAL PRIME MINISTER
पीवी नरसिम्हा राव व पामुलापति वेंकट नरसिंह राव (28 जून 1921 – 23 दिसंबर 2004 )
पीवी नरसिम्हा राव को नौवें प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता हैं | इनके प्रधानमंत्रित्व काल में ‘लाइसेंस राज’ की समाप्ति व ‘भारतीय अर्थनीति’ में खुलेपन का आरंभ हुआ था। पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है जो शुरू होती है, 21 मई 1991 जब राजीव गांधी जी की हत्या कर दी गई थी|
1991 में आम चुनाव के दो चरण हुए थे,पहले चरण के चुनाव राजीव गांधी की हत्या के पूर्व एवं द्वितीय चरण के चुनाव उनकी हत्या के बाद हुए थे, जिसकी तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर था | कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर होने का प्रमुख कारण राजीव गांधी जी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर थी जबकि इस चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त हुआ था |
लेकिन सबसे बड़े दल होने के रूप में उभरी कांग्रेस ने सहानुभूति का फायदा उठाते हुए 232 सीटों पर विजय प्राप्त की और नरसिम्हा राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व प्रदान किया गया।
पीवी नरसिम्हा राव नाम ने भारत की कमान उसे वक्त संभाली जब भारत में विदेशी मुद्रा भंडार चिंताजनक स्तर तक कम हो गया था जिसके परिणाम स्वरूप देश का 21 टन सोना भी गिरवी रखना पड़ा था ।
भारत में विदेशी मुद्रा की स्थिति एवं कारण :
20 जून 1991 की शाम कैबिनेट सचिव नरेश चंद्र नवयुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिले और उन्हें आठ पेज का एक टॉप सीक्रेट नोट दिया जब राव ने नोट को पढ़ा तब राव के हाथ पैर फूल गए नोट देखने के बाद राव की पहली टिप्पणी थी कि ‘क्या भारत की आर्थिक हालात इतनी खराब है ?’ जिस पर नरेश चंद्र का जवाब ‘नहीं सर वास्तव में इससे भी ज्यादा…’।
1991 में जब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को बनाया गया था उससे पहले भारत की विदेशी मुद्रा भंडार की हालत यह थी कि वह अगस्त, 1990 आते-आते सिर्फ तीन अरब 11 करोड डालर रह गया था तथा जनवरी 1991 में भारत के पास मात्र 89 करोड़ की विदेशी मुद्रा रह गई थी, जिसके परिणाम स्वरूप भारत के पास दो सप्ताह के आयात के लिए ही विदेशी मुद्रा बची थी।
विदेशी मुद्रा भंडार की हालत खराब होने के कुछ मुख्य कारण :
- 1990 की खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतों की तिगुनी वृद्धि |
- कुवैत पर इराक के हमले की वजह से भारत में मजदूरों की वापसी |
- वहां से भेजे जाने वाली विदेशी मुद्रा का रुक जाना।
- भारत की राजनीतिक अथिरता और मंडल आयोग की सिफारिश के खिलाफ उभरा जन आख्रोश।
- आनिवासी भारतीयों का भारतीय बैंकों से अपने पैसे निकालना।
पीवी नरसिम्हा राव के एक फैसले ने बदल दिए देश की हालात :
प्रधानमंत्री के दौड़ में प्रणब मुखर्जी ने नरसिम्हा राव का साथ दिया था क्योंकि वह उनसे उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें एक बार फिर से वित्त मंत्री बनाया जाएगा।
लेकिन नरसिम्हा राव के इरादे कुछ और ही थे । राव ने अपने दोस्त और इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर से सलाह ली तो उन्होंने अपने मंत्रिमंडल से दो पेशेवर पहले अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह और दूसरे रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर आईजी पटेल के नाम दिए।हालंकि अलेक्जेंडर मनमोहन सिंह के पक्ष में थे इसलिए उन्हीं को मनमोहन सिंह को मनाने की जिम्मेदारी दी गई।
उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘थ्रू थे कॉरिडोर्स का पावर एन इंसाइडर्स स्टोरी‘ में लिखा कि:
20 जून को उन्होंने मनमोहन सिंह को फोन किया फोन उनके नौकर ने उठाया जिसने बताया कि वह यूरोप गए हुए हैं और देर रात तक लौटेंगे दूसरे दिन 21 जून को जब सुबह 5:30 बजे उन्होंने फोन किया तब वह गहरी नींद में सो रहे थे क्योंकि वह देर रात से लौटे थे इसलिए उन्हें जगाया भी नहीं जा सकता था |
हालांकि बहुत जोर देने के उन्हें जगाया गया लेकिन घर पहुंचने से पहले वह दोबारा सोने जा चुके थे बरहाल उन्हें किसी तरह फिर जगाया गया और उन्हें नरसिम्हा राव का संदेश बताया गया संदेश यह था कि वह मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री के रूप में चुनना चाहते थे।जिस पर मनमोहन सिंह ने अलेक्जेंडर से उनकी राय पूछी जिस पर उनका जवाब था कि ‘अगर मैं इसके खिलाफ होता तो इस समय आपसे मिलने नहीं आता’।
शपथ लेने से पहले जब मनमोहन सिंह , नरसिम्हा राव से मिले तो उन्होंने कहा;’ मैं आपको काम करने की पूरी आजादी दूंगा अगर हमारी नीतियां सफल होती हैं तो हम सब उसका श्रेय लेंगे लेकिन अगर हम असफल होते हैं तो आपको जाना पड़ेगा’|
मनमोहन सिंह का वित्त मंत्री बनने के बाद पहला कदम :
वित्त मंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने राव को एक हस्तलिखित गोपनीय नोट भेजा जिसमें उन्होंने अवमूल्यन की सलाह दी एवं कहा कि इसे दो चरणों में किया जाए,
हालांकि राव इस फैसले के खिलाफ थे क्योंकि उनके नजर में अल्पसंख्यक सरकार को इतना बड़ा निर्णय लेने का कोई हक नहीं है बावजूद इसके उन्होंने वित्त मंत्री की सलाह पर अमल करते हुए 1 जुलाई 1991 को रुपए का पहला अवमूल्यन किया एवं 48 घंटे बाद रुपए का दूसरा भी अवमूल्यन कर दिया गया।
देश का सोना बेचकर हुई थी टैक्स की भरपाई :
भारत की आर्थिक स्थिति देखकर नरसिम्हा राव सरकार ने प्रधानमंत्री बनने के लगभग दो सप्ताह बाद ही दक्षिण मुंबई में रिजर्व बैंक के कोष्ट से बंद गाड़ियों में 21 टन सोना बकायदे सुरक्षा बंदोबस्त के साथ 35 किलोमिटर दूर सहार हवाई अड्डे तक पहुचाया जिसे ले जाने के लिए हेवी लिफ्ट कार्गो एयरलाइंस का विमान खड़ा हुआ था।
इस सोने को लंदन पहुचाकर बैंक ऑफ इंग्लैंड के कास्ट में रखा गया जिसके बदले में भारत सरकार को जो डॉलर मिले इसकी वजह से भारत को कर भुगतान में देरी की अनुमति मिल गई जिसके परिणाम स्वरूप 1992 का मध्य आते-आते भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मध्य से बढ़कर सामान्य हो गया।
सोनिया गांधी सरकार ने कभी नहीं किया राव की उपलब्धियां का जिक्र, कारण :
- नरसिम्हा राव के विचार से 1966 में इंदिरा गांधी द्वारा किए गए रुपए का अवमूल्यन भारत के लिए इन मुसीबतो की जड़ है |
- अवमूल्यम की सलाह से राव खुश नहीं थे बल्कि उनका कहना था कि एक अल्पसंख्यक सरकार का इतना बड़ा फैसला लेना गलत है।
- दूसरा चरण का अवमूल्यन रोकने के लिए जब उन्होंने मनमोहन सिंह को फोन मिलाया तो पता चला कि सुबह 9:30 बजे ही अवमूल्यन किया जा चुका है जिससे मनमोहन सिंह बहुत खुश थे लेकिन उन्हें नाखुश होने का दिखावा करना पड़ा।
- नेहरू और इंदिरा की नीतियों को बजट में पलटना।
राव के साथ पार्टी का बुरा व्यवहार :
देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा ने अपने बुक में अपने पिता के हवाले से कुछ ऐसे चौंकाने वाले खुलासे किए हैं जिसे साफ पता चलता है कि कांग्रेस यानि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी ने कभी नहीं किया राव की उपलब्धियां का जिक्र
नरसिम्हा राव ने देश को आर्थिक दुर्गति से निकला एवं आर्थिक उदारीकरण का फैसला किया जिसका कांग्रेस ने कभी भी जिक्र तक नहीं किया यानी अपनी ही पार्टी की ओर से राव को कभी वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे ।
2004 में जब राव ने अपनी अंतिम सांसे ली तब उनका अंतिम संस्कार तक दिल्ली में होने नहीं दिया गया,देश के पूर्व पीएम एवं आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम राव का पार्थिव शरीर 24 अकबर रोड के बाहर देर तक खड़ा जहा इंदिरा गाँधी ,प्रणवमुखर्जी और मनमोहन सिंह भी उपस्थित थे जिसके बाद भी उन्हें दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई इसके बाद उनका अंतिम संस्कार आंध्र प्रदेश में किया गया |
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