CG News: लाल आतंक को बड़ा झटका, नक्सली कमांडर हिड़मा की मौत
CG News: बीते दिनों आंध्रप्रदेश के अल्लूरी सीतारामराजू जिले के घने जंगलों में सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में हिड़मा मारा गया, साथ हीं इस कार्रवाई में उसकी पत्नी सहित चार अन्य नक्सलियों की भी मौत हुई है, देश के सबसे कुख्यात नक्सली कमांडरों में से एक माड़वी हिड़मा की मृत्यु ने नक्सलवाद विरोधी अभियानों को एक निर्णायक मोड़ दे दिया है.
कौन था नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा?
नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा का असली नाम संतोष था, लेकिन नक्सल संगठन में वे “हिड़मा” के नाम से प्रसिद्ध थे, वे छतीसगढ़ के सुकमा जिले के एक छोटे से गाँव पुर्वती के रहने वाले थे, लेकिन उनका जुड़ाव बहुत हीं कम उम्र में नक्सली आन्दोलन से हो गया, उन्होंने सन 1996 में लगभग 17 वर्ष की आयु में नक्सली संगठन में क़दम रखा, धीरे -धीरे वे इस संगठन में बढ़ते गए और माओवादी पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की पहली बटालियन के कमांडर बने, उनके खिलाफ सिर्फ पुलिस हीं नहीं बल्कि, आमजन और सुरक्षा बलों के बीच भी बेहद तीव्र भय था, माड़वी हिड़मा ने दशकों से कई बड़े हमलों का नेतृत्व किया था, उनकी अब तक की सबसे कुख्यात हमलों में छत्तीसगढ़ में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या शामिल है, इस हमले को उनके द्वारा किए गए रणनीतिक घात और घेराबंदी की योजना से जोड़ा जाता है, माड़वी हिड़मा मात्र एक नक्सल कमांडर होने के साथ – साथ नक्सली संगठन की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य भी थे, उन पर लगभग 1 करोड़ रुपए का इनाम घोषित किया गया था.
माड़वी हिड़मा के एनकाउंटर का विवरण
सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच 18 नवंबर 2025 की सुबह मुठभेड़ हुई, यह मुठभेड़ आंध्र प्रदेश – छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के त्रि – राज्य सीमा क्षेत्र में मारेदुमिली जंगलों में हुई, नक्सलियों के खिलाफ यह ऑपरेशन सीआरपीएफ, स्थानीय पुलिस, ग्रेहाउंडस और अन्य विशेष इकाइयों की संयुक्त टीम द्वारा चलाया गया था, सुरक्षा बलों और नक्सलियों की मुठभेड़ के बाद सुरक्षा बलों ने हिडमा के शव की पहचान की, इस मुठभेड़ में माड़वी हिड़मा के साथ, उनकी पत्नी राजे (राजक्का) और अन्य चार नक्सली भी मारे गए हैं, गृह मंत्री अमित शाह ने सुरक्षा बलों को इस “सफल ऑपरेशन” के लिए बधाई दी और इसे नक्सलवाद के विरुद्ध लड़ाई में एक महत्वपूर्ण क़दम बताया है.
माड़वी हिड़मा, नक्सली आन्दोलन का ‘रणनीतिक मास्टरमाइंड’
माड़वी हिड़मा को नक्सली आंदोलनों में ‘रणनीतिक मास्टरमाइंड’ के रूप में देखा जाता था, उनकी सांस्कृतिक जड़ों और स्थानीय जनजातीय पहचान ने उन्हें बस्तर क्षेत्र में एक लोकप्रिय और प्रेरणादायक नेतृत्वकर्ता बना दिया था, उनकी खासियत मात्र हिंसक हमलों का नेतृत्व करना नहीं था बल्कि, जंगलों की भूगोलिक समझ और लम्बे समय तक पकड़ में न आने की क्षमता थी, उनकी इस खासियत की वजह से हीं सुरक्षा बलों के लिए उन्हें खत्म करना सरल नहीं था, उनकी मौत सुरक्षा बलों के लिए एक बड़े झटके की वजह से महत्वपूर्ण है, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि, इससे नक्सलवादी संरचना में एक बड़ा अन्तराल पैदा हो सकता है.
माड़वी हिड़मा की मां की भावुक अपील
हिड़मा की मां, माड़वी पोज्जे, वर्तमान में पुवर्ती गाँव में रहती हैं और उन्होंने पुलिस से अपने बेटे का शव वापस गाँव ले आने की मांग की है, ताकि पारंपरिक अंतिम संस्कार विधि पूरी की जा सके, माड़वी हिड़मा की माँ की अपील बेहद भावुक थी, उन्होंने कहा, “मैं बूढी हूँ, मैं वहाँ नहीं जा सकती, कम – से – कम मुझे उसके शरीर को गाँव में लाकर दिखा दो,” परिवार के लोग अब आंध्र प्रदेश के अस्पताल में रखे गए शव को लेने की प्रक्रिया में लगे हैं, माड़वी हिड़मा के गाँव में हिड़मा की मौत की ख़बर सुनते हीं स्थानीय लोग कई प्रकार की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, कुछ लोगों ने जश्न बनाया, जबकि बुजुर्ग और महिलाएं पारंपरिक मातम की प्रथा शुरू कर चुकी हैं.
नक्सल आन्दोलन पर असर
विश्लेषकों का कहना है कि, माड़वी हिडमा की मौत नक्सलवाद के लिए एक बड़ा झटका हो सकती है, विशेष तौर पर तब, जब वे जनजातीय नेतृत्व का एक प्रमुख चेहरा थे, माओवादी संगठन पहले से हीं नेतृत्व संकट का सामना कर रहा है, कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, केन्द्रीय कमेटी में खामी थी और वरिष्ठ नेतृत्व की अनुपस्थित संगठन को कमजोर कर रही थी, माड़वी हिडमा की अनुपस्थिति से संगठन में भर्ती, रणनीति और संचालन के स्तर पर असर पड़ सकता है, सुरक्षा बलों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, यदि वे इस जीत को आगे बढाएं तो बस्तर और आसपास के क्षेत्रों में नक्सल गतिविधियों को नियंत्रित करना आसान हो सकता है.
माड़वी हिडमा की मौत राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ी कामयाबी
माड़वी हिडमा की मौत राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ी कामयाबी है, यह न सिर्फ एक खतरनाक कमांडर का अंत है, बल्कि नक्सलवाद के युग में एक प्रतीकात्मक मोड़ भी माना जा सकता है, लेकिन इतिहास और व्यवहार दोनों सिखाते हैं कि, आतंकवाद – विरोधी लड़ाई न केवल फायरफायटिंग तक सिमित नहीं हो सकती है, उसका समाधान लम्बे समय तक चलने वाले सामाजिक – आर्थिक सुधार, संवाद और पुनर्स्थापना की दिशा में होना चाहिए, माड़वी हिडमा के जाने के बाद बस्तर की धरती एक नए अध्याय की ओर अग्रसर है.




