Hindi Diwas 2024: युवाओं के कंधों पर टिका है हिंदी का भविष्य
Hindi Diwas 2024: कहते हैं बेटे जब बड़े हो जाते हैं तो मां की देखभाल करना बेटों का कर्तव्य हो जाता है, ऐसा ही आज हिंदी के साथ है, जो युवा बचपन से हिंदी में संवाद हिंदी में भोजन,हिंदी में रोना, हिंदी में हंसना और हिंदी में सपने देखते आए हैं उनके लिए हिंदी मां से कम नहीं इसलिए आज जब बच्चे बड़े बड़े हो गए हैं तो उन्हें मां के संरक्षण करने लिए आगे आना आवश्यक है. वर्तमान समय में हिंदी की स्थिति वृद्ध आश्रम में छोड़ी गई मां के जैसी है, उसे उसके ही बेटों ने आज किसी और के खातिर त्याग दिया है. आज जो लोग हिंदी में संवाद करते हैं हिंदी में अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं उन्हें समाज में उतनी इज्जत नहीं दी जाती उन्हें कई दफा अनपढ़ जैसी संज्ञा भी दे दी जाती है.
आज आप विश्व के किसी भी देश में चले जाइए हर देश के पास उसकी एक भाषा है, जिसके अंतर्गत रहकर वह अपने देश के सभी कार्यों को करते हैं, मगर हिंदुस्तान का दुर्भाग्य ऐसा है कि हमारे पास खुद की राष्ट्रभाषा भी नहीं है. ऐसा नहीं है कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है परंतु आधिकारिक रूप से हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया गया है. भारत में आज सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही हैं. फिर भी आज हिंदी को समाज में जो सम्मान मिलना चाहिए वो उसे नहीं मिल पा रहा है.
कुछ दिन पहले मेरी मुलाकात एक व्यक्ति से हुई थी वह दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहा है, कभी वो व्यक्ति मेरा भी दोस्त हुआ करता था. हमारी मुलाकात हुई तो मैंने उससे पूछा और भाई कैसे हो उसने मेरे सवाल का जवाब अंग्रेजी भाषा में दिया और हमारी बातचीत के दौरान वह सिर्फ अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल कर रहा था. बातें करते-करते हम थोड़ा टहलने लगे,तभी चलते वक्त अचानक उसके पैरों पर कांटा चुभ गया, पैर पर अचानक कांटा चुभने से वह दर्द से कराह उठा और उसके मुंह से दो शब्द निकाले और वह शब्द थे ”मम्मी रे”. उस दिन मुझे यह एहसास हुआ कि हम अपने अंदर कितनी भी अंग्रेजी क्यूं ना भर ले हमारे ज़हन और में हमारी रगों पर बहते खून में बसी हुई है हिंदी.
आज हमारे घर में कोई छोटा बच्चा जब पढ़ने योग्य हो जाता है तो उसके लिए जब हम विद्यालय का चयन करते हैं तो हिंदी माध्यम के विद्यालय को नजर अंदाज कर उसे अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में पढ़ना चाहते हैं, ताकि वह भविष्य में एक सफल व्यक्ति बन सके. इस मानसिकता से यह साफ पता लगता है कि हमारे समाज में हिंदी बोलने वाला व्यक्ति असफल माना जाता है. देखिए हम सभी सर से पैर तक हिंदी के कर्जे में डूबे हुए हैं हमारी यह जिम्मेदारी बनती है इस कर्ज को हम ब्याज सहित वापस लौटाएं.
मेरी नजर में इस कर्ज को सिर्फ देश की युवा पीढ़ी ही उतार सकती है. क्यूंकि आने वाले दिनों में यह वतन युवा पीढ़ी के हाथों में होने वाला है इसलिए जैसी उनकी मानसिकता होगी वैसा ही देश का भविष्य भी होगा. अगर उन्होंने यह ठान लिया की हिंदी को हमें वैश्विक पटल पर लेजाकर उसकी एक अलग पहचान बनानी है तो यह अवश्य संभव होगा. क्यूंकि आप ही हैं युवा देश के भविष्य और आप के ही कंधों पर टिका है हिंदी का भविष्य. हिंदी हमारी मां है इसलिए यह सब बता अब फैसला आप पर छोड़ हूं. अब आप खुद ही फैसला कीजिए की आप अपनी मां को अपने साथ रखना चाहते हैं या उसे वृद्ध आश्रम में छोड़ना चाहते हैं.
Author: Rishi Raj Shukla
ऋषि राज शुक्ला पत्रकारिता विद्यार्थी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, राजनीति, फिल्म, खेल तथा तत्कालीन मुद्दों में खबर लिखने में विशेष रुचि.